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जो युगों से अमिट थी पहचान ढूँढता हूँ २
देश के हर नर में श्री राम ढूँढता हूँ
सीता ढूँढता हूँ नारी के आचरण में २
मंदिरों में जाकर भगवान ढूँढता हूँ २
जो युगों से अमिट थी पहचान ढूँढता हूँ
चली थी जिस पे राधा चली थी जिस पे मीरा २
चला था बन के जोगी वो संत वो कबीरा
वो राह ढूँढता हूँ उनके निशान ढूँढता हूँ २
जो युगों से अमिट थी पहचान ढूँढता हूँ
कहाँ है मेरे गौतम कहाँ है मेरे गांधी २
सब कुछ बिखर रहा है ऐसी चली है आंधी
जो हों देश पर समर्पित अरमान ढूंढ़ता हूँ २
जो युगों से अमिट थी पहचान ढूँढता हूँ
फिर देश में बहुत से जयचंद हो गए है २
सच्चाई घुट रही है लब बंद हो गए है
शेखर भगत वो बिस्मिल वो खान ढूँढ़ता हूँ २
जो युगों से अमिट थी पहचान ढूँढता हूँ
देश के हर नर में श्री राम ढूँढता हूँ
-अभिषेक
जो युगों से अमिट थी पहचान ढूँढता हूँ २
देश के हर नर में श्री राम ढूँढता हूँ
सीता ढूँढता हूँ नारी के आचरण में २
मंदिरों में जाकर भगवान ढूँढता हूँ २
जो युगों से अमिट थी पहचान ढूँढता हूँ
चली थी जिस पे राधा चली थी जिस पे मीरा २
चला था बन के जोगी वो संत वो कबीरा
वो राह ढूँढता हूँ उनके निशान ढूँढता हूँ २
जो युगों से अमिट थी पहचान ढूँढता हूँ
कहाँ है मेरे गौतम कहाँ है मेरे गांधी २
सब कुछ बिखर रहा है ऐसी चली है आंधी
जो हों देश पर समर्पित अरमान ढूंढ़ता हूँ २
जो युगों से अमिट थी पहचान ढूँढता हूँ
फिर देश में बहुत से जयचंद हो गए है २
सच्चाई घुट रही है लब बंद हो गए है
शेखर भगत वो बिस्मिल वो खान ढूँढ़ता हूँ २
जो युगों से अमिट थी पहचान ढूँढता हूँ
देश के हर नर में श्री राम ढूँढता हूँ
-अभिषेक
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2 comments:
अच्छी रचना
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