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तूं मेरे जीवन की है आस, तुझे रक्खूगा दिल के पास
तूं मेरी प्रेम ग़ज़ल है, तूं मेरी प्रेम ग़ज़ल है
तुम्हे सोचूं, तुम्हे देखू, तुम्हारे गीत में गाऊं
तुम्ही तो हो जीवन का राग, तुम्ही से है ये मेरे दिन रात
तूं मेरी प्रेम ग़ज़ल है, तूं मेरी प्रेम ग़ज़ल है
जो आज हुए हम दूर, ये है प्यार का एक दस्तूर
कल फिर से होगे पास, हमारा जनम-जनम का साथ
तूं मेरी प्रेम ग़ज़ल है, तूं मेरी प्रेम ग़ज़ल है
जो आज नहीं मैं पास, तो होती हो तुम क्यों उदास
करूँगा सात समंदर पार, मिलूँगा तुमसे मेरे दिलदार
तूं मेरी प्रेम ग़ज़ल है, तूं मेरी प्रेम ग़ज़ल है
तूं मेरे जीवन की है आस, तुझे रक्खूगा दिल के पास
तूं मेरी प्रेम ग़ज़ल है, तूं मेरी प्रेम ग़ज़ल है
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यहाँ आप मेरी ये कविता मेरी आवाज़ मैं सुन सकते है | ये मेरा नया प्रयोग है, आशा है अच्छा लगेगा |
-अभिषेक
Meri aawaj
Thursday, August 19, 2010
Sunday, August 15, 2010
आज का दौर
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इस हादसों के दौर में हम चकनाचूर हो गए
जब से अपनी माँ के आँचल से दूर हो गए
बहुत मुश्किल न था हमारा मशहूर होना यहाँ
हमने जमीर बेंचा और हम मशहूर हो गए
कोई काम नहीं आता एक दूसरे के यहाँ
आज हम सब देखो कितने मगरूर हो गए
बेटियों को बाप ने ये कह कर जहर दिया
माफ़ करना हमको हम तो मजबूर हो गए
दह्शदगर्दी छाई है मेरे हर एक शहर में
सुना है अमन के फ़रिश्ते शहरों से दूर हो गए
इस हादसों के दौर में हम चकनाचूर हो गए
जब से अपनी माँ के आँचल से दूर हो गए
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- अभिषेक
इस हादसों के दौर में हम चकनाचूर हो गए
जब से अपनी माँ के आँचल से दूर हो गए
बहुत मुश्किल न था हमारा मशहूर होना यहाँ
हमने जमीर बेंचा और हम मशहूर हो गए
कोई काम नहीं आता एक दूसरे के यहाँ
आज हम सब देखो कितने मगरूर हो गए
बेटियों को बाप ने ये कह कर जहर दिया
माफ़ करना हमको हम तो मजबूर हो गए
दह्शदगर्दी छाई है मेरे हर एक शहर में
सुना है अमन के फ़रिश्ते शहरों से दूर हो गए
इस हादसों के दौर में हम चकनाचूर हो गए
जब से अपनी माँ के आँचल से दूर हो गए
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- अभिषेक
Saturday, August 14, 2010
मेरी कुछ छोटी-छोटी पंक्तियाँ
1).
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उजाले तेरी यादों के अपनी आँखों में समाये,
इस सफ़र में दिये तेरी यादों के जलाये
चले आये है तेरे शहर से बहुत दूर अब,
क्या फर्क पड़ता है इधर जाएँ या उधर जाएँ
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2).
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कोई कहता है की हम यहाँ मंदिर बनायेंगे,
कोई कहता है की हम यहाँ मस्जिद बनायेंगे
अरे मंदिर और मस्जिद तो पहले ही था मेरा देश,
ये तुले है कि ये इसे जहन्नुम बनायेंगे
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-अभिषेक
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उजाले तेरी यादों के अपनी आँखों में समाये,
इस सफ़र में दिये तेरी यादों के जलाये
चले आये है तेरे शहर से बहुत दूर अब,
क्या फर्क पड़ता है इधर जाएँ या उधर जाएँ
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2).
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कोई कहता है की हम यहाँ मंदिर बनायेंगे,
कोई कहता है की हम यहाँ मस्जिद बनायेंगे
अरे मंदिर और मस्जिद तो पहले ही था मेरा देश,
ये तुले है कि ये इसे जहन्नुम बनायेंगे
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-अभिषेक
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