Meri aawaj

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Monday, April 9, 2012

ज़िंदगी ने कुछ यूँ तजुर्बे कराये हमें

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ज़िंदगी ने कुछ यूँ तजुर्बे कराये हमें ।
कुछ दोस्त दोस्त नज़र न आये हमें ।।

आईना कभी तो मुझे मुझको दिखाए ।
क्यों हर बार एक अजनबी नजर आये हमें ।।

हम चाँद की तरह आज चमके तो है ।
पर क्यों चाँद मे कई दाग नज़र आये हमें ।।

हर बार क्यूँ ये खुदा मैं तेरे दर पे आऊं ।
कभी तू भी तो मेरे घर मिलने आये हमें ।।

हर दोस्त दोस्त नज़र न आये हमें ।
ज़िंदगी ने कुछ यूँ तजुर्बे कराये हमें ।।

-अभिषेक
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Saturday, March 10, 2012

शंख वाणी को बना लो

जब भी देश में परिस्थितियां विपरीत रही है, कवियों और लेखकों ने अपनी कलम से क्रांति का विगुल बजाया है। आजादी मिले हुए कई दशक बीत गए फिर भी देश के हालात बहुत गंभीर है। मैं अपनी इस रचना के जरिये देश के कवियों और लेखकों से आग्रह करता हूँ की वो अपनी लेखनी और आवाज के माधय्म से देश के युवाओं को जगाएं और उनको एकजुट करके इन परिस्थितियों से लड़ने के लिए प्रेरित करें। जय हिंद, जय भारत ।
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शंख वाणी को बना लो कलम को तलवार करलो
हे कवी अब वक़्त आया गद्दारों पर वार करलो


हर युवा अब टूटता है उसका साहस छूटता है
धुंध आँखों में जमाये सहमा-सहमा घूमता है
तूं शब्द अपने फूँक इनमे क्रांति की हुंकार भरदो
शंख वाणी को बना लो कलम को तलवार करलो
हे कवी अब वक़्त आया गद्दारों पर वार करलो


सब जले है अधमरे है सर झुकाए सब खड़े है
आंधिया चिंघाड़ती है दीप सारे बुझ पड़े है
नाव युग की डूबती है कलम को पतवार करलो
शंख वाणी को बना लो कलम को तलवार करलो
हे कवी अब वक़्त आया गद्दारों पर वार करलो


खून निर्दोषों का अब पानी की तरह है बह रहा
ख्वाब शहीदों का है देखो रेत जैसा ढह रहा
तूं दहाड़ कर इन वादियों में जोश का संचार करदो
शंख वाणी को बना लो कलम को तलवार करलो
हे कवी अब वक़्त आया गद्दारों पर वार करलो


शंख वाणी को बना लो कलम को तलवार करलो
हे कवी अब वक़्त आया गद्दारों पर वार करलो  


-अभिषेक 
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