हवा जब तेज़ चलती है तो पत्ते टूट जाते हैं
मुसीबत के दिनों में अच्छे-अच्छे टूट जाते हैं
बहुत मजबूर हैं हम झूठ तो बोला नहीं जाता
अगर सच बोलते हैं हम तो रिश्ते टूट जाते हैं
बहुत मुश्किल सही फिर भी मिज़ाज अपना बदल लो तुम
लचक जिनमें नहीं होती तने वे टूट जाते हैं
भले ही देर से आए मगर वो वक़्त आता है
हक़ीक़त खुल ही जाती है मुखौटे टूट जाते हैं
अभी दुनिया नहीं देखी तभी वो पूछते हैं ये
किसी का दिल, किसी के ख्व़ाब कैसे टूट जाते हैं
'तुषार' इतना ही क्या कम है तुम्हें वो देखते तो हैं
अगर कुछ रौशनी हो तो अँधेरे टूट जाते हैं
बहुत खूब लिखते है तुषार जी। आशा है आप सभी को भी अच्छी लगी होगी ये उनकी रचना । ये बहुत ही कड़वी सच्चाई है की
बहुत मजबूर हैं हम झूठ तो बोला नहीं जाता
अगर सच बोलते हैं हम तो रिश्ते टूट जाते हैं
तुषार जी की सबसे विशेष बात यही है की बड़ी सहजता से वो बहुत बड़ी बात बोल जाते है । तुषार जी की एक और कविता जो मुझे अच्छी लगती है आपके लिए यहाँ लिखता हूँ । यह उनके ग़ज़ल संग्रह वो ज़माने अब कहाँ की है ।
ये सफ़र कितना कठिन है रास्तों को क्या पता
कैसे-कैसे हम बचे हैं हादसों को क्या पता
आँधियाँ चलतीं हैं तो फिर सोचतीं कुछ भी नहीं
टूटते हैं पेड़ कितने आँधियाँ को क्या पता
अपनी मर्जी से वो चूमें, अपने मन से छोड़ दें
किस क़दर बेबस हैं गुल ये तितलियों को क्या पता
एक पल में राख कर दें वो किसी का आशियाँ
कैसे घर बनता है यारो बिजलियों को क्या पता
आइने ये सोचते हैं सच कहा करते हैं वो
उनके चेहरे पर हैं चेहरे आइनों को क्या पता
जाने कब देखा था उसको आज तक उसके हैं हम
क़ीमती कितने थे वे पल उन पलों को क्या पता
जैसे वो हैं हम तो ऐसे हो नहीं सकते 'तुषार'
हम उन्हें भी चाहते हैं दुश्मनों को क्या पता
आशा है ये भी आप पसंद करेंगे । अगर आप उनकी कुछ और कविताये पड़ना चाहते है तो इस लिंक पर जाईयेगा ।
http://pustkain.blogspot.com/