Meri aawaj

Meri aawaj

Friday, January 22, 2016

जैसा सोचो तुम वैसे हो

जैसा सोचो तुम वैसे हो,
रजकण या तारे तुम ही हो
हो सूरज का तेज तुम्ही,
निश के अंधियारे तुम ही हो

तुम ही तो रस हो नीरस में,
तुम ही काशी हो तीरथ में
मन के मारे भी हो तुम ही
तुम ही वो मन जो हो बस में
गिर के जो टूटे हो तुम्ही,
गिरतों के सहारे तुम ही हो
जैसा सोचो तुम वैसे हो,
रजकण या तारे तुम ही हो

तुम ही फूलों की माला से,
तुम ही अग्नि की ज्वाला से
गंगा जल जैसे हो तुम ही,
तुम ही सर्पों की हाला से
जीवन निर्माता हो तुम्ही,
जीवन से हारे तुम ही हो
जैसा सोचो तुम वैसे हो,
रजकण या तारे तुम ही हो

तुम ही सावन के छींटों से
तुम ही मँदिर की ईंटों से
संघर्षों की हार तुम ही
तुम संघर्षों की जीतों से
दुनियाँ कोसे वो हो तुम्ही
दुनियाँ के प्यारे तुम ही हो
जैसा सोचो तुम वैसे हो,
रजकण या तारे तुम ही हो

तुम ही तो बढते योवन हो
तुम ही तो गर्मी में वन हो
संकट सारे तुम से होते
तुम ही तो संकट मोचन हो
तूफाँ में डूबे हो तुम्ही
तूफाँ में किनारे तुम ही हो
जैसा सोचो तुम वैसे हो,
रजकण या तारे तुम ही हो