Meri aawaj

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Saturday, September 25, 2010

मुहब्बत का मैंने वो मक़ाम पा लिया

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मुहब्बत का मैंने वो मक़ाम पा लिया 
मिले उसको रोशनी, सो खुद को जला लिया

हम खाक है और वो है सितारों का हकदार
मिले उसको बुलंदी, सो खुद को मिटा लिया

जिन्दगी ने तोहफे में दिए कुछ फूल कुछ कांटे  
काँटों पे सोये हम, उसे फूलों पे बिठा लिया

करता भी क्या उस घर का जिस में नहीं है वो 
इसलिए "अनन्त" मैंने घर को जला दिया

-अभिषेक "अनन्त"
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Friday, September 24, 2010

सोच

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वक़्त की तरह मैं चुपचाप चल रहा हूँ
बर्फ का टीला हूँ,  बूंद बूंद गल रहा हूँ

राख है जो दिखती है बाहर से सभी को
अन्दर से अंगार हूँ, अन्दर मैं जल रहा हूँ

क़त्ल करके देख लो कर पाओ जो मुझको
मैं तो एक ख्वाब हूँ, आँखों में पल रहा हूँ

मिट्टी का नहीं हूँ जो मिट जाऊंगा में कल
मैं कल भी रहूँगा, और मैं कल भी रहा हूँ

चले जाते है इंसान सब छोड़ कर के युं
मैं तो उनकी  सोच हूँ, जिन्दा ही रहा हूँ

-अभिषेक 
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Sunday, September 19, 2010

श्री शिव सागर शर्मा जी की कवितायेँ

आज मैं आप लोगों को आज के युग के श्रंगार रस के कवि श्री शिव सागर शर्मा जी की कुछ रचनाएँ सुनाने जा रहा हूँ | मैं जब भी श्री शिव सागर जी को सुनता हूँ तो मुझे श्रंगार रस के श्रेष्ट कवि श्री बिहारी जी की स्मृति आती है जिन्हें में अपने स्कूल के दिनों में पड़ा करता था |
तो यहाँ हैं श्री शिव सागर जी की पहली रचना "ताजमहल" जो बहुत ही प्रसिद्ध हुई है :



वैसे तो कविता का एक एक शब्द मुझे पसंद है पर मेरी सबसे पसंदिता पंक्ति है "चांदनी रात में ताज के फर्श पर यूँ न टहलो ये मीनार हिल जाएगी " 

एक और इनकी रचना जो मुझे बहुत पसंद है आपको सुनवाता हूँ "नैना कज़रा बिना कटार "