Meri aawaj

Meri aawaj

Sunday, February 27, 2011

आरजूएं

=============================
मेरा दिल आरजूओं की फटी पोटली है
जिसे मैं वक्त के धागे से सीता जा रहा हूँ
जब मैं इसे निकाल कर खूंटे पे टाँगता हूँ
तो देखता हूँ आरजूओं को इससे टपकते हुए
आरजूएं कुछ ज़माने से घबराती हुई
आरजूएं कुछ अपने आप पे इतराती हुई
गौर से देखता हूँ तो ये महसूस होता है
की दरअसल ये एक दूसरे से जुडी हुई है
कुछ आरजूएं तो अजीब सी लगती है
लगता है मेरी नहीं किसी और की है
कुछ जवान है और उमंग से भरी हुई है
कुछ बूढी है और झुझलाई सी है
मैं जैसे खो ही गया था इनको देखकर
कि तभी एक हारी-थकी मेरे पास आई
बोली तुम मुझे कब पूरा करोगे
मैं बहुत थकी हूँ इन में सबसे बड़ी हूँ
मैं उसे समझा ही रहा था कि तभी
दूसरी ने मुझे जोर से झझोरा
तीसरी ने मुझे धमकाया
और फिर देखते ही देखते सब
एक साथ मुझ पर टूट पड़ी
मैं घबरा गया और सबको बटोरा
पोटरी में बांध कर ज्यों का त्यों रख दिया

-अभिषेक
============================

Thursday, February 24, 2011

जो युगों से अमिट थी पहचान ढूँढता हूँ

============================
जो युगों से अमिट थी पहचान ढूँढता हूँ २
देश  के  हर नर  में श्री राम  ढूँढता  हूँ
सीता  ढूँढता  हूँ  नारी के  आचरण  में २
मंदिरों  में  जाकर  भगवान  ढूँढता  हूँ २
जो युगों से अमिट थी पहचान ढूँढता हूँ

चली थी जिस पे राधा चली थी जिस पे मीरा २
चला था बन के जोगी वो संत  वो कबीरा
वो राह ढूँढता हूँ उनके निशान ढूँढता हूँ २
जो युगों से अमिट थी पहचान ढूँढता हूँ

कहाँ है मेरे गौतम कहाँ है मेरे गांधी २
सब कुछ बिखर रहा है ऐसी चली है आंधी
जो हों देश पर समर्पित अरमान ढूंढ़ता हूँ २
जो युगों से अमिट थी पहचान ढूँढता हूँ

फिर देश में बहुत से जयचंद हो गए है २
सच्चाई घुट रही है लब बंद हो गए है
शेखर भगत वो बिस्मिल वो खान ढूँढ़ता हूँ २
जो युगों से अमिट थी पहचान ढूँढता हूँ
देश  के  हर नर  में श्री राम  ढूँढता  हूँ

-अभिषेक
============================

एक नजर में ही सबको तार देता है वो

एक नजर में ही सबको तार देता है वो 
रूह को फिर से एक नई धार देता है वो

सर झुकाओगे तो खुद को नया पाओगे 
बिगड़ी हुई किस्मत यूँ सवांर देता है वो 

तेरे दामन में ग़र आंसू है तो जा वहां
फैली झोली में खुशियाँ अपार देता है वो

मंदिर और मस्जिद दोनों ही घर है उसके
हर मझहब को बराबर का प्यार देता है वो

-अभिषेक

Sunday, February 13, 2011

दिल ने मेरे मुझे कहा

=============================
दिल ने मेरे मुझे कहा चलो कुछ लिखा जाये
नीर की स्याही बहुत है आज कुछ रचा जाये
 
चित्र जो बिखरे से है और कुछ धुँधले से है
बटोर कर उन सभी को आज फिर रंगा जाये

आरजुएँ जो टूटी मरोड़ी इर्द गिर्द मेरे पड़ी
जोड़ कर इनके सिरों को आज थोडा कसा जाये

तब पुराने अधजले से स्वप्न मुझको याद आये 
हाँथ देखो कपकपाये कैसे इनको लिखा जाये 

याद आये वादे सभी पुरे और कुछ आधे सभी
टीस तब दिल मै उठी कैसे इसको सहा जाये

आगया हूँ छोड़ कर उसके सपनो का महल
माँ मेरी बैठी हुई है लौट के कब लला आये

वक़्त है आजा अभी लौटके तूँ अपने घर
तेरी दुनिया है यहाँ तूँ जाने कहाँ-कहाँ जाये

भावनाएं घुल गई फिर मेरी सच्चाइयों मै  
और ये रचना बनी है, क्या इसे अब कहा जाये

दिल ने मेरे मुझे कहा चलो कुछ लिखा जाये
नीर की स्याही बहुत है आज कुछ रचा जाये

-अभिषेक 
=============================

Friday, February 11, 2011

आज कागज़ पे, मेरे आँसुयों ने यूँ लिखा

===========================
बर्फ सी पिघल गई शाम मेरे सीने में
आज कागज़ पे, मेरे आँसुयों ने यूँ लिखा

गुनगुनाते ही वक़्त के होंठ थरथरा गए
मुद्दतो से घुटती हुई, ख्वाहिशो ने यूँ लिखा

चमकता सूरज भी आँखे छुपाने लगा
मेरी दिल की अँधेरी, आरजुओं ने यूँ लिखा

गुलशन का हर गुल गुमसुम सा हो गया
उजड़ी हुई दिल की, वादियों ने यूँ लिखा

-अभिषेक
===========================

Friday, February 4, 2011

थक गया हूँ अब तो सोने दो मुझे

==========================
थक गया हूँ अब तो सोने दो मुझे
दिन भर देखे ख्वाब संजोने दो मुझे

सूख कर पत्थर हुए उन आँसुयों से
एक सीप सी माला पिरोने दो मुझे

तप गयी रूह मेरी इन चाँद तारों से
आंसुओं की झील में डुबोने दो मुझे

ख्वाबों को बेचकर इस दुनियांदारी में 
पाया है जो कुछ भी खोने दो मुझे
 
-अभिषेक
==========================