ख्वाब जिनके मायने होते नहीं है
आँख में हम अपनी पिरोते नहीं है
तूँ हुस्न का सैलाब है तो क्या हुआ
तूँ हुस्न का सैलाब है तो क्या हुआ
हर सैलाब नाव को डुबोते नहीं है
वो सूरज था सो डूब गया शाम को
हम जुगनू है रात में सोते नहीं है
सूख कर पथरा गई है आँखे मेरी
मुद्दतों से अब हम रोते नहीं है
मिलते है वो हमसे ऐसे जैसे
उनके अब हम कुछ होते नहीं है
वो सूरज था सो डूब गया शाम को
हम जुगनू है रात में सोते नहीं है
सूख कर पथरा गई है आँखे मेरी
मुद्दतों से अब हम रोते नहीं है
मिलते है वो हमसे ऐसे जैसे
उनके अब हम कुछ होते नहीं है
- अभिषेक
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