Meri aawaj

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Friday, September 24, 2010

सोच

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वक़्त की तरह मैं चुपचाप चल रहा हूँ
बर्फ का टीला हूँ,  बूंद बूंद गल रहा हूँ

राख है जो दिखती है बाहर से सभी को
अन्दर से अंगार हूँ, अन्दर मैं जल रहा हूँ

क़त्ल करके देख लो कर पाओ जो मुझको
मैं तो एक ख्वाब हूँ, आँखों में पल रहा हूँ

मिट्टी का नहीं हूँ जो मिट जाऊंगा में कल
मैं कल भी रहूँगा, और मैं कल भी रहा हूँ

चले जाते है इंसान सब छोड़ कर के युं
मैं तो उनकी  सोच हूँ, जिन्दा ही रहा हूँ

-अभिषेक 
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3 comments:

Udan Tashtari said...

चले जाते है इंसान सब छोड़ कर के युं
मैं तो उनकी सोच हूँ, जिन्दा ही रहा हूँ

-बहुत बढ़िया.

Anonymous said...

अभिषेक जी,

आप हमारे ब्लॉग पर आये और अपनी अहमतरीन राय से नवाज़ा उसके लिए आपका तहेदिल से शुक्रिया....आप जैसे कद्रदानो के लिए ही मैंने ये कोशिश की है .......उम्मीद है आप ब्लॉग को फॉलो करके इसी तरह आगे भी हौसलाफजाई करते रहेंगे..........

अब बात आपके ब्लॉग की ..........अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर .........बहुत ही खुबसूरत पोस्ट डाली है आपने ..........इस रचना में कुछ सूफियाना रंग दिखता है , कुछ शेर बहुत ही अच्छे लगे|

हरकीरत ' हीर' said...

क़त्ल करके देख लो कर पाओ जो मुझको
मैं तो एक ख्वाब हूँ, आँखों में पल रहा हूँ

बहुत खूब ....!!