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कैसी इस सफ़र की शुरुवात की है मैंने
दुश्मनों के शहर में हर रात की है मैंने
किया है खून उसने मेरे अमनो-पहल का
जब भी रकीब से प्यार की बात की है मैंने
चमक उठती है सोते में पलके ये हमारी
ख्वाबों में जब उससे मुलाकात की है मैंने
आंसू नहीं बचे जब रो-रो के रात-दिन
तब आँखों से खून की बरसात की है मैंने
उसकी यादों का तीर जब सीने पे लगा है
तब एक नई ग़ज़ल की शुरुवात की है मैंने
-अभिषेक
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3 comments:
har sher khubsurat ddad ki kabil mubarak ho
har sher khubsurat ddad ki kabil mubarak ho
nice really heart touch feelings,
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